|
हाल के अध्ययनों
से पता चला की भारत दुनिया के सबसे अधिक कुपोषण लोगों का देश है। भूख और कुपोषण एक
ही सिक्के के दो पहलू हैं। भारत मैं कुपोषण विशेष रूप से बच्चों और महिलाओं में बड़े पैमाने पर है जो की बहुत ही खतरनाक है। बच्चों के बीच
कुपोषण सबसे गंभीर परेशानी में से एक बन गया है। एक वैश्विक अध्ययन मैं पाया गया
की भारत में 42% बच्चे कुपोषित हैं और 58% बच्चे नाटेपन (विकास अवरुद्ध) का शिकार
हैं । भारत में हर दूसरी महिला को खून की कमी है। दरअसल, एनीमिया 5 वर्ष से नीचे के बच्चों के बीच 75%
है, 15-59 वर्ष 87% और 51%
गर्भवती महिलाओं को प्रभावित है। 70% से अधिक महिलाओं और बच्चों को गंभीर पोषक
तत्वों की कमी है। इसी प्रकार, कुपोषण अनुसूचित जनजाति (अजजा), अनुसूचित जाति (एससी) और अल्पसंख्यकों (मुसलमान) मैं बीच
काफी आधिक मैं पाया गया है (54%यूनिसेफ report )। कुपोषण भोजन की उपलब्धता, माता-पिता के स्वास्थ्य, मैली रहने की स्थिति, शौचालय की असुविधा आदि से होती है, यह गरीबी, और जागरूकता के अभाव का परिणाम भी है. भारत मैं
लगभग 8.2% का प्रतिनिधित्व अनुसूचित जनजाति (अजजा) कर रहे हैं। झारखंड राज्य मैं 28%
आदिवासी है। आदिवासी जनजातीय लोगों की बीच कुपोषित होने की अधिक संभावना इन कारणों
से हो सकती है, उनकी भोजन करने की आदतें, उपलब्धता और पहुंच, स्वास्थ्य देखभाल की कमी , शिक्षा और जागरूकता के स्तर से । 90% से अधिक
आदिवासी या जनजातीय लोगों ग्रामीण क्षेत्र में रहते हैं। आदिवासी लोगों का अलग अलग
जीवन शैली, परंपरा और
सांस्कृतिक मानदंड है। कुपोषण जनजातीय आबादी के बीच उच्च संख्या में मौत के कारणों
में से एक हो सकता है। कुपोसन से इन्सान का सही विकास नहीं हो पाता है. कुपोषित
व्यक्ति कमजोर और नाटा रह’ जाता है. कqपोसन के कारण उसका मस्तिक भी कमजोर हो जाता है.
जिसके करना वह पढाई मैं भी कमजोर रहेता है.
शारीरिक एवa मानसिक विकास हर जीवित जंतुओं का अधिकार है. विकास का मतलब
है वजन का बढना, लंबाई बढना, बुदि का विकास होना, भाषा का विकास. कुदरत का यह अनुटा
वरदान है की हर जंतु का विकास जन्म के बाद अपने आप होता है. पर हम सब यह भी जानते
हैं की अच्छा विकास तभी सEभाव है जब सही पोसन उचित समय पर मिले और देक भाल ठीक से हो. यह बात एक किसान बहुत अच्छी तरह से
बता सकता है की एक पौधे को सही विकास के लिए उचित समय पर पानी, खाद, उत्तम वातावरण
के साथ साथ सही देख बाल कितना अनिवार्ये होती है तभी पौधा बड़ा हो कर अधिक से अधिक
फल देता है. उसी तरह हमें भी अपने बच्चे के उचित विकास के लिए सही पोसन एवम
वातावरण के साथ साथ सही देख बाल करने की बहुत जरुरत है. जिस तरह एक पौधा छोटे मै
बहुत तेजी से बढता है, उसी तरह एक बच्चा का शारीरिक एवम मानसिक विकास दो से आठ साल
तक सबसे तेजी से होता है. अगर इन आट सालों मैं बच्चे का सही देख भाल नहीं किया गया
तो बच्चों में उचित विकास नहीं हो पता है
जैसे शारीरिक एवम मानसिक रूप से कमजोर
होना, नाटा होना, दुबला पतला होना.
हल ही के एक रिसर्च में
पाया गया कि 60-70% आदिवासी बच्चे कुपोषित हैं. जब आधी से अधिक आदिवासी बच्चे
बचपन से ही शारीरिक एवम मानसिक रूप से
कमजोर रहेगें तो अदिवाशियों का हर {ks«k में विकास करना नामुमकीन के बराबर हैं. ये एक मुख्य कारण
है जिसके कारण आदिवासी हर {ks«k मैं बाकि लोंगों से काफी पीछे रहे जाते हैं. चाहे वह पढाई
हो, नौकरी हो या कोई और काम. जब तक आदिवासी अपने बच्चों का सही पालन पोषण नहीं करेंगें उनका उचित विकास नहीं होगा.
Comments